Thursday, July 10, 2014

Baarish

बारिश की बूँदें ये कहें 
तेरा मौसम हमेशा रहे 
मिटटी की सोहनी ये महक 
ज़िक्र एक बस तेरा ही करे 

जैसे बादल मैं फिरता रहा 
मैं सवालों में उलझा रहा 
दर-बदर मैं भटकता ही रहा 
मुझे  ठिकाना मगर न मिला 
तू आई 
संग लेके
सुकून लाई, ख़ुशी लाई


मेरे दिल की इस  बंज़र ज़मीं 
पे जाने कब से ग़ुल खिले ही नहीं 
गुलशन की खुशबू होती है क्या 
ये मुझको न ख़बर थी कभी

जैसे प्यासे भँवरे की तरह
जैसे टूटे पत्ते की तरह
तेरी चाह में बंजारा बना
मुझे ठिकाना मगर न मिला

तू आई 
संग लेके
सुकून लाई, ख़ुशी लाई
तू आई 


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