तेरा मौसम हमेशा रहे
मिटटी की सोहनी ये महक
ज़िक्र एक बस तेरा ही करे
जैसे बादल मैं फिरता रहा
मैं सवालों में उलझा रहा
दर-बदर मैं भटकता ही रहा
मुझे ठिकाना मगर न मिला
तू आई
सुकून लाई, ख़ुशी लाई
मेरे दिल की इस बंज़र ज़मीं
पे जाने कब से ग़ुल खिले ही नहीं
गुलशन की खुशबू होती है क्या
ये मुझको न ख़बर थी कभी
जैसे प्यासे भँवरे की तरह
जैसे टूटे पत्ते की तरह
तेरी चाह में बंजारा बना
मुझे ठिकाना मगर न मिला
जैसे प्यासे भँवरे की तरह
जैसे टूटे पत्ते की तरह
तेरी चाह में बंजारा बना
मुझे ठिकाना मगर न मिला
तू आई
संग लेके
सुकून लाई, ख़ुशी लाई
तू आई
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