Tuesday, July 15, 2014

आ भी जा

तेरे बिन ज़िन्दगी ज़िन्दगी तो  नहीं
दिन गुज़रते हैं रो रो कर, रातें कटती नहीं
सांसें बे आरज़ू
लम्हे बे सुकूं
तेरे बिन मैं क्या करूँ
तू ही बता अब कैसे जियूँ

मान जा
यूँ ना सता
आ भी जा, आ भी जा
यूँ ना  रुला
आ भी जा, आ भी जा
मान जा

इश्क़ है ऐसा सफ़र
कांटो भरी रहगुज़र
मुझको इसकी नहीं खबर थी कभी
कैसे मोड़ पे है रुकी
तेरे बग़ैर ये  ज़िन्दगी
तू ही बता क्या गलत है क्या है सही?
मेरे सवालों का तू जवाब दे
मुझे फिर से तू वही ख़्वाब दे

मान जा.....

दूर तो क्यों गयी
अजनबी तू क्यों हुई
तूने वादा किया था मुझसे कभी रूठेगी नहीं
बस इतना रहम कर
सुन ले ओ बेख़बर
आईने टूट जाएँ तो फिर जुड़ते नहीं
मेरा मंज़र वो हसीं लौटा दे
फ़िज़ा बंज़र जमी पे तू  बिखरा दे


मान जा...

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