Sunday, May 11, 2014

माँ

मैं तुमसे  कभी कहता नहीं
पर रह रह कर
तुम बड़ी  याद आती हो माँ


पिताजी  कहते हैं "अब तुम बड़े हो गये हो"
"भविष्य की सोचो … चतुर-गंभीर रहो.... !
 दुनिया निर्दयी है, संभल कर चलो "


चतुराई , गंभीरता सब
तुम्हारी गोद में कहीं ग़ुम हो  जाते हैं
और आँखों में भविष्य नहीं दीखता
केवल बचपन के दिन याद  आते हैं!

तुम्हारा लाड़-प्यार, दुलार
झूठमूठ की डांट , स्नेह भरी मार
महंगी दुकानो के पकवानो में
तुम्हारे खाने सा स्वाद नहीं
हरेक कौर पे याद आता है तुम्हारा छोह
कहानियाँ , मिन्नतें, गुस्सा
इस कमरे से उस कमरे
थाली लेकर मेरे पीछे भागना


समय बदल गया है, आगे  बढ़  गया है
लोग बदल गये हैं , और मैँ भी
लेकिन बदला नहीं तुम्हारा प्यार
मेरे लिए तुम्हारी फ़िक्र
मेरी ख़ुशी में तुम्हारी हॅंसी
बदली नहीं तुम,
माँ !

तुम्हारी बातें लिखने को समय पूरा नहीँ पड़ता
न शब्द, न स्याही न पन्ने
इसीलिए बस इतना कह रह हूँ रहा हूँ
रह रह कर
तुम बड़ी  याद आती हो माँ !

No comments: