बुतों के आगे जो रोज़ रौशनी करते हो,
कभी करुणा के मंदिर में भी दीप जलाया करो
लड्डुओं का भोग पत्थर को चढाने वालों
कभी मानवता को भी प्रेम प्रसाद चखाया करो.
तिलक टोपी का बोझ लेकर चलते हो
कभी स्नेह का, दया का भार उठाया करो
ईश्वर के चरणों में खुद को सौंपने वालों
कभी उठ के एक दूजे को गले लगाया करो
कभी करुणा के मंदिर में भी दीप जलाया करो
लड्डुओं का भोग पत्थर को चढाने वालों
कभी मानवता को भी प्रेम प्रसाद चखाया करो.
तिलक टोपी का बोझ लेकर चलते हो
कभी स्नेह का, दया का भार उठाया करो
ईश्वर के चरणों में खुद को सौंपने वालों
कभी उठ के एक दूजे को गले लगाया करो
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