करवटें बदलता हूँ तो हौले से...
मुस्कुराती है वो, गुनगुनाती है
"क्यूँ सपनों में देखते हो मुझे
जो मैं तुमसे हूँ, तुम्हारी हूँ?"
आखें मिचमिचाते..उन्घियाते
जो मैं उठता हूँ...
उसे छूने की, पाने की कोशिश करता हूँ
चुपके से हौले से
मेरी पलकों को सहला के
मुझको जगा के
वो छिप जाती है कहीं...
रात......!
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