पंख लगे अरमानों से
ये प्रश्न मेरा मन करता है..
"हर रोज़ किधर को उड़ता है?
किस ओर तुझे है जाना रे!"
पंख लगे अरमान मेरे
हर बार यही दोहराते हैं
"वो देख क्षितिज तेरे सपनों का
उस पार है मेरा ठिकाना रे!"
पंख लगे अरमान मेरे
मुस्काते हैं, इतराते हैं
मैं सोच में फिर पड़ जाता हूँ
वो सोच परे उड़ जाते हैं.
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