Wednesday, April 10, 2013

अरमान


पंख लगे अरमानों से
ये प्रश्न मेरा मन करता है..
"हर रोज़ किधर को उड़ता है?
किस ओर तुझे है जाना रे!"

पंख लगे अरमान मेरे
हर बार यही दोहराते हैं
"वो देख क्षितिज तेरे सपनों का
उस पार है मेरा ठिकाना रे!"


पंख लगे अरमान मेरे
मुस्काते हैं, इतराते हैं
मैं सोच में फिर पड़ जाता हूँ
वो सोच परे उड़ जाते हैं.

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