धर्म जोड़ता था कल तक.
अब तोड़ता है..
गर्दन धर मोड़ता है..
त्यागी धर्म तज गया
ढल गया..जल गया
बलि चढ़ गया
स्वार्थ की अग्नि में..
भजन अज़ान सब भस्म
लोभ के हवन कुण्ड से प्रकट
घृणा, हिंसा लिप्त धर्म
चीख-चिल्लाहट के नाद में
तुम्हारा मेरा धर्म, करो
शत-शत शाष्टांग नमन!
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