Anand Shankar
Divulging myself..
Tuesday, September 18, 2012
कश
कश के धुंए से बनाता
तुम्हारा चेहरा
एक कश में आँखें,
एक कश में होंठ
एक कश में अपना प्रेम..
क्षण-भंगुर है कश,
अपने साथ की तरह
शाश्वत है प्रेम, पर
जैसे तुम्हारी हंसी
और मेरा पागलपन,
जैसे चिलम
लगाता हूँ तो ही
चिलम पे चिलम
धुंए पे धुआं...
कश पे कश!
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