Sunday, November 20, 2011

बुलबुला





मैं भी तो बुलबुला हूँ..
जो उड़ना चाहे, ऊँचा और ऊँचा
इतना की कभी ज़मीन को छूने न पाए
इतना की पेड़ों से टकराने न पाए
अपनों से मुह मोड़ कर
इस ताने-बाने को छोड़ कर
घुटन भरे सालों से प्रिय
मुझे आज़ादी के कुछ क्षण
उनमें ही जी लूं
आत्म-रस पी लूं
कर लूं स्वयं से साक्षात्कार!

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