Thursday, January 8, 2009

मधुशाला को समर्पित मेरी कुछ पंक्तियाँ ...
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माँ का आँचल भी फीका है..
प्रेयसी का आलिंगन ढीला..
उन्मुक्त हुए तो भाव सभी ..
बस तेरी गोद में मधुशाला!


उत्सव की ज़रुरत उनको है
जिसने न चखी हाय हाला
वो तो जलसों में डूबा है
जो नित दिन जाए मधुशाला

छेड़े ह्रदय में मधुर तान
जब गिरती प्यालों में हाला
गाये राग दीप, मल्हार, राग सब
एक ही सुर में मधुशाला!

वो खुद से बातें करता है
वो खुद से करता है खेला
वो ही इश्वर..वो स्वयम भक्त
जो पूजता जाए मधुशाला!

क्या है मिथ्या क्या परम सत्य
ये भूल चूका पीने वाला
उसकी नज़रों में एक ही शिव
सुन्दर भी एक वो मधुशाला!

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