Tuesday, October 8, 2013

कठपुतली

आओ रे आओ
रे देखो रे देखो
ढोल बजाओ रे
ताली बजाओ

डोर की छोर से बंधे ये पुतले
काठ  की काया के अन्दर है माया
डोर संभाले है नटी नट भट्ट
खेल खेलाओ रे झट-पट-फट!

आज की नहीं ये कथा पुरानी जिसमें
मन का है राजा और तन की है रानी
सोने की नगरी है लंका समानी
प्रजा दीवानी है, प्रजा सयानी

राजा जगे सोए, सपनों ही में खोए
लूटे -खसोटे खजाना बटोरे
रानी पियासी, है  सदा उदासी
मदमस्त राजा, देख चुपचाप  रोए

अच्छा लगा खेल तो ताली बजाओ
(ताली)
पैसा घुमाओ
रे आओ रे आओ! (... contd)

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