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जो नित्य चलायमान है
स्थिर गति से, सौम्यता से
धूप-छाँव, मौसम मौसम
सदियाँ, साल महीने हर क्षण
वो पुष्पक में है या रथ में
मैं सीता हूँ या हूँ अर्जुन
इन प्रश्नों से, दुविधाओं से
जीवन के इस चक्रव्यूह से
अभिमन्युओं की नियति से
परे निकलकर, बचकर
उसकी छाती से लिपटकर
मुझको स्थिर होना है
चलायमान समय के
संग संग चलना है ...
धूप-छाँव, मौसम मौसम
मेरे जीवन का हर एक क्षण
समय तेरी सेवा में तत्पर.
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भावार्थ:-
समय हर मौसम में एक होता है ... लोग उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं ...
कोई कहता है समय तुम्हारी परीक्षा ले रहा है तुम्हें सबक दे रहा है
भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को गीता का सन्देश दिया था .. वो अर्जुन के सारथी थे
इसीलिए पुष्पक , रथ, सीता, अर्जुन आये हैं कविता में
कोई कहता है समय के चक्र को कोई भेद नहीं सकता...
अभिमान्यू ने महाभारत में चक्रव्यूह भेदना चाहा था.. मगर मारा गया
कवि कहता है कि उसे इन फेरों में नहीं पड़ना
...
वो सीता की तरह समय रुपी रावन के समक्ष असहाय नहीं होना चाहता
न ही वो अर्जुन या अभिमन्युं बन के समय से संघर्ष करना चाहता है
वो समय के साथ चलना चाहता है ..कवि भी समय की तरह हर मौसम में एक सा महसूस करना चाहता है
2 comments:
bahut khoob
शुक्रिया मोहनीश भाई ...
आपने ग़रीबखाने में पाँव रखे ये ही बड़ी बात है इस नाचीज़ के लिए :)
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