Tuesday, June 19, 2012

अख़बार

कोने में पड़ा
दबा कुचला एक अख़बार..
"कोई मुझे पढता क्यूँ नहीं..?
जो हूँ , वो कोई देखता क्यूँ नहीं..?"
हा हा हा!
ठहाकों के बीच गुमसुम
बेबस और लाचार
कल दालमोठ उठाने के काम आया था |
आज दीवार को धूल से बचा रहा है 
मैला, गन्दा अख़बार
कोने में पड़े हुए भी 
खुद को साबित करने की ज़िद है..
उसको क्या ख़बर
कल आँख खुलेगी तो 
खुद को डस्ट-बिन में पायेगा 
मुड़ा-चुड़ा अख़बार| 

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