Sunday, August 14, 2011

भगत की व्यथा..


कल तुम मेरे नाम के नारे लगाओगे,

ढोल-नताशे संग..

खूब जमाओगे रंग

आज़ादी के गीत गाओगे

आनंद में तिरंगा लहराओगे

पर क्या फायदा , जब..

परसों मुझे भूल जाओगे...

ग्लानी होती है , दुःख भी होता है..

तुमको वो दिया जिसकी तुम्हें क़द्र नहीं

शायद वो भी, जिसपे तुम्हें फक्र नहीं...

आंसू तो सूख जायेंगे

पर उनके दाग किधर जायेंगे?

पूछते हैं मुझसे वो सब..

भगत, कैसा है मेरा देश अब?

अस्सी वर्ष हो गए झूठ कहते हुए..

"अब सब ठीक है,, चैन लो यारों"

" उन्नति है, समाज में सुख है, मेरे प्यारों "

वो सुनते हैं, मुस्कुराते हैं

दाग देखकर, पर दिल में घबराते हैं

मैंने तो हँसते हँसते सूली को गले लगाया

तुमसे आज़ादी का वादा किया था, सो निभाया

पर तुम भूल गए अपना वो वचन

"सर्वरूपेण समानता का बनायेंगे वतन"

ऊपर बैठा वो आताताइयों का गुट

हँसता है मुझपे

"भगत, यू फूल!"

दिल में चुभता है एक शूल

जी करता है तुमसे अपनी शहादत वापस मांग लूं

तुम्हारी तरह मैं भी , नपुंसकता का चोगा टांग लूं

क्यूंकि तुंम ६४वी बार फिर वोही दोहराओगे

अगले दिन फिर अपना कहा ही भूल जाओगे..

Saturday, August 6, 2011

व्यर्थ

व्यर्थ में ढूँढता हूँ अर्थ..
सौंदर्य में, संगीत में
स्नेह में और प्रीत में
भूमि में, आकाश में
सूर्य के प्रकाश में
...जन्म में विदित है जो
मृत्यु में जो है छुपा
क्षण - क्षण में जो बदल रहा
कण - कण जिसे निगल रहा
मस्तिष्क के वो है परे
किन्तु मन में बस रहा

हाँ, व्यर्थ मैं ढूँढता हूँ अर्थ!