Saturday, August 6, 2011

व्यर्थ

व्यर्थ में ढूँढता हूँ अर्थ..
सौंदर्य में, संगीत में
स्नेह में और प्रीत में
भूमि में, आकाश में
सूर्य के प्रकाश में
...जन्म में विदित है जो
मृत्यु में जो है छुपा
क्षण - क्षण में जो बदल रहा
कण - कण जिसे निगल रहा
मस्तिष्क के वो है परे
किन्तु मन में बस रहा

हाँ, व्यर्थ मैं ढूँढता हूँ अर्थ!

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