Thursday, May 26, 2011

हिंद के निवासी


हाँ, भाषा अनेक हैं..
धर्म भी अनेक हैं
जाति में बंटे हैं हम
सुन लो फिर भी एक हैं!

विश्वास भाव मन में है
सहिष्णुता जीवन में है
एकरूप राष्ट्रप्रेम
अटूट सबके प्रण में है!|

प्रत्यंचा ये अटूट है
सदियों से जो है बंधी
डोर भाई चारे की
टूट ये सकती नहीं

साम दान भेद दंड..
जितना जोर है लगा
'पिनाक' ये महाप्रचंड
रावण से कब ये हिल सका|

हिंद के निवासी हम..
गर्व है , अभिमान है
न थे मिटे कभी, न
मिट सकेंगे , तू ये जान ले!

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