मंदिर में शिवलिंग के किनारे
अल्लाह के काँधे पर सर रखकर
शिव रोते हैं सुबक-सुबक कर
ये हमारे बच्चों को क्या हो गया?
तुमने तो कहा था बस इतना ही ज़हर है
संसार में, जो मेरे हलक़ तक है
फिर इनके भीतर ये ज़हर कहाँ से आया?
कौन लाया?
मेरे गले के तो सांप भी नहीं डसते
इनको डसना फिर किसने सिखाया?
कुर्ते से आंसू पोंछते हुए
शिव के, अपने भी, बोले अल्लाह
दोष अपना ही है
जो इन्हें दिल बख़्शा, और बेअक्ली भी
इन जाहिलों ने हमें एक से दो बनाया
मुझे अल्लाह और तुम्हें शिव
मुझे मस्जिद और तुम्हें मंदिर में बिठाया
जोइन्हें पत्थर बनाते
तो ये दिन न आते
यूँ खुद से खुद को न लड़वाते!
अल्लाह के काँधे पर सर रखकर
शिव रोते हैं सुबक-सुबक कर
ये हमारे बच्चों को क्या हो गया?
तुमने तो कहा था बस इतना ही ज़हर है
संसार में, जो मेरे हलक़ तक है
फिर इनके भीतर ये ज़हर कहाँ से आया?
कौन लाया?
मेरे गले के तो सांप भी नहीं डसते
इनको डसना फिर किसने सिखाया?
कुर्ते से आंसू पोंछते हुए
शिव के, अपने भी, बोले अल्लाह
दोष अपना ही है
जो इन्हें दिल बख़्शा, और बेअक्ली भी
इन जाहिलों ने हमें एक से दो बनाया
मुझे अल्लाह और तुम्हें शिव
मुझे मस्जिद और तुम्हें मंदिर में बिठाया
जोइन्हें पत्थर बनाते
तो ये दिन न आते
यूँ खुद से खुद को न लड़वाते!