इश्क का फरमान लेकर
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मशगूल अपनी शोखियों में..
वो चली आई
"हुक्म है की आपका दिल
मुझमें ही अब से बसे..
आपकी यादों पे बन्दे!
साया मेरी रूह का बस..
आपके ये लफ्ज़, सुन लें..
ज़िक्र मेरा ही करें !"
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मशगूल अपनी शोखियों में..
क्या खबर उनको?
वो पढ़ रही फरमान..
और हम पढ़ रहे उनको!