वो सनकी ख्वाबों के बोझ तले दब जाता है
अपने मरे शरीर के आगे घी के दिए जलाता है
गा कर , हंस कर अपना मातम मनाता है
आंसू भरे भगोने से गंगा जल पिलाता है
अपेक्षाओं की मार से लहू लुहान देह को
समाज से मिली उलाहनाओं का कफ़न ओढाता है
"राम नाम झूठ है.." इसके नारे लगता है
अकेला ही खुद को शमशान पहुंचता है
वो सनकी अपनी मौत का जश्न मनाता है
अपनी चिता को वो खुद ही आग लगता है!
अपने मरे शरीर के आगे घी के दिए जलाता है
गा कर , हंस कर अपना मातम मनाता है
आंसू भरे भगोने से गंगा जल पिलाता है
अपेक्षाओं की मार से लहू लुहान देह को
समाज से मिली उलाहनाओं का कफ़न ओढाता है
"राम नाम झूठ है.." इसके नारे लगता है
अकेला ही खुद को शमशान पहुंचता है
वो सनकी अपनी मौत का जश्न मनाता है
अपनी चिता को वो खुद ही आग लगता है!
No comments:
Post a Comment