Saturday, July 14, 2012

फरमान

इश्क का फरमान लेकर
वो चली आई
"हुक्म है की आपका  दिल
मुझमें ही अब से बसे..
आपकी यादों पे बन्दे!
साया मेरी रूह का बस..
आपके ये  लफ्ज़, सुन लें.. 
ज़िक्र मेरा ही करें !"

.......
मशगूल अपनी शोखियों में..
क्या खबर उनको?
वो पढ़ रही फरमान..
और हम पढ़ रहे उनको!


Sunday, July 1, 2012

कल...


कल वो आयेंगे
ऐसा घर भर में शोर है
बेवजह चूड़ियाँ खनकती नहीं
उमंगों  में ये  कैसी  होड़ है.

दरवाज़े  राह  तकते  हैं
उनकी  दस्तक  की आस में
मचलते हैं डूब  जाने  को
उस छुवन के अहसास में..

चादर  लिपट  रही   है
सिकुड़  रही है, सहम  रही  है
लाज  के तकिये  में मुह  डाले
पहली    रात की तरह

पलको पे डेरा है
यादों का, ख्वाइशों का
मुस्कुराहटों  का
आंसुओं का भी..

डर   का चश्मा  भी है
पर   आँखों   पे..
वादों से  कैसी वफ़ा ?
कैसा   प्यार , कैसा याराना  ?
यूँही तो कसमें अभागी  नहीं
........................

रात ढलती  गयी
शोर कमता  गया
चूड़ियाँ मौन  हैं
दरवाज़े   रुआंसे
खाली चादर, खाली पलकें
कल के इंतज़ार में....
वो आज  भी नहीं आये!