Tuesday, June 19, 2012

अख़बार

कोने में पड़ा
दबा कुचला एक अख़बार..
"कोई मुझे पढता क्यूँ नहीं..?
जो हूँ , वो कोई देखता क्यूँ नहीं..?"
हा हा हा!
ठहाकों के बीच गुमसुम
बेबस और लाचार
कल दालमोठ उठाने के काम आया था |
आज दीवार को धूल से बचा रहा है 
मैला, गन्दा अख़बार
कोने में पड़े हुए भी 
खुद को साबित करने की ज़िद है..
उसको क्या ख़बर
कल आँख खुलेगी तो 
खुद को डस्ट-बिन में पायेगा 
मुड़ा-चुड़ा अख़बार| 

मन

अकेला चला मन.. 
अँधेरा-उजियारा उसके साथी..
ख्याल, ख्वाहिशें में उसका ख़ानदान
मोह के मकड़जाल से परे..
परे सामाजिक उलझनों से
खुद से मिलने.. 
उस बोधी-वृक्ष की खोज में
अकेला चला मन..
अकेला..





Tuesday, June 12, 2012

Modern Intellectual




कुरता खादी का झाड़ के..
जींस को नीचे से फाड़ के..
माथे पे अट्ठन्नी सी बिंदी चिपकाइए..
बाजू में झोला लटकाइए..
बालों को bob cut कटवाइए
और हाँ.. चेहरे पे काला चश्मा लगाइए..
चप्पल घसीटिए
मार्क्सवाद का डंका पीटीए
धर्म को गलियाइए..
RSS को थपदिआइये
आँखें तैरते हुए, भृकुटी उठाइए..
Sustainable development, Social Justice
का जाप १०८ बार दोहराइए..
फेसबुक  पे "Social Activist"
का status लगाइए..
और Intellectual बन जाइए..