Friday, April 1, 2011

आह्वान


करते नित जिसका स्नेह-वंदन
वो माता कर रही करुण-क्रंदन
रखने को वो अपना मान
कर रही तुम्हारा आह्वान

हे देश के नौनिहाल! करो
पुनर्स्मरण अपना वो कल
संपूर्ण विश्व जिस हेतु करे
भारत माता का चरण -वरण

वेदों से निःसृत ज्ञान की
ये भूमि है श्री राम की
जगद्गुरु यही आर्यावर्त
विश्व ज्योति का संवाहक

सब धर्मो का यही शरणालय
इसमें ही संस्कृतियों का विलय
ये स्थान कला-विज्ञानं का
संरक्षक है सम्मान का|


फिर आज उसी माता की आँखें
आंसू खून के रोती हैं
सब देख जान के भी पुत्रों के
ह्रदय द्रवित नहीं होते हैं..

ये कैसा हुआ वातावरण
अट्टहास कर रहा दु:शाशन
द्रौपती के भाग फिर फूट रहे
अधर्मी मर्यादा लूट रहे

कलयुगी रावण ये असंख्यमुखी
हो रही प्रजा फिर आज दुखी
कर रहे लोग फिर त्राहिमाम
कहाँ हो तुम लक्ष्मण ओ राम?

धर्म हो रहा छिन्न-भिन्न
लाज रो रही खिन्न खिन्न
पांडवों! तुम कब तक सोवोगे
उठ्ठो, वरना कल रोवोगे

हे राणा के वंशज तुम
क्या भूल गए अपना वो कल?
सुशुप्त वीर बजरंगी तुम
याद करो वो साहस- बल

हे भारत के शूरवीर!
रख लिया तुमने अब बहुत धीर
डंके रणभेरी बजवा दो
सेना सारी को सजवा दो

अधर्म विजयी न हो जाए
माता लज्जित न होने पाए
युक्ति-शक्ति -साहस भर लो
हे देवपुत्र! यह प्रण कर लो

"देवभूमि इस भारत को
देना है न्यायोचित स्थान
लौटना है मातृभूमि को
यश, गौरव और स्वाभिमान!"