Tuesday, May 12, 2009

ज्वालामुखी

मानव तू मुख है ज्वाला का
सब सोच समझ कर बोल
तेरी तपिश जला देगी पृथ्वी को
नयन ज़रा अब खोल॥

तुझे ज्ञान नही तुझमें सीमित
है बुद्धि और शक्ति अपार
तू स्वर्ग बना सकता धरती को
या कर सकता है तार तार॥

जिस कोख में तुने जनम लिया
जिस आँचल में तेरी पलनी
जिसको तू माता कहता है
कर रहा आज उसको छलनी?

जहाँ बहती थी नदियाँ दूध की
वहां बहती है अब लहू की धारा
मचा हुआ कोहराम चहुओर
त्राहिमाम करे है जग सारा॥

तुने देखी ममता है बस
नहीं सुना अभी भीषण हुंकार
मत बेबस कर माँ के मन को
करने को तेरा ही संहार..